ईश्वर है कि नहीं, मुझे नहीं पता कि उपनिषद कभी ईश्वर की बात करते हैं या नहीं। शायद यह उसके बाद की डेवलपमेंट है। मैं गॉड के बारे में मना नहीं करता लेकिन गॉड के बारे में इन्वेस्टिगेट करना चाहता हूं।
ईश्वर का कॉन्सेप्ट बाद का विकास है। ईश्वर जिसके बारे में लोग विश्वास करते हैं कि वह सब जानने वाला, सर्व शक्तिमान, सब पर कृपा करने वाला और इटरनल है ज्ञानी जिसका कभी अंत नहीं होता। अगर उसने हमें बनाया है तो फिर यह सब हमारे भीतर भी होना चाहिए। लेकिन हम ऐसे नहीं हैं। अगर उसने हमें बनाया है तो हम इतने दुखी इतने बुरे हालत में क्यों हैं।
क्योंकि सच्चाई यह है ईश्वर ने नहीं, हमने ईश्वर को बनाया है। और जिस ईश्वर को हमने बनाया है वह हमारा ही स्वरूप है और हम अपने स्वरूप पूजा करके सिर्फ अपने अहंकार की परिक्र…
प्रेम क्या है इसका उत्तर जानना बहुत जरूरी है। और योग उत्तर किसी इंटेलेक्चुअल कॉन्शसनेस से नहीं बल्कि उसका कैसा स्वभाव है और हम उसे कैसे अनुभव कर सकते हैं उस तरह से जानना जरूरी है। जिससे हम इस ऊर्जा को महसूस कर सकें, सिर्फ उसके बारे में चर्चा या उसके पारलौकिक होने या कुछ और होने की चर्चा भर कर के ना रह जाएं।
अगर आप उसे अपनी कॉन्शियस माइंड और इंटेलेक्ट से जानना चाहते हैं, तो यह जरूरी है कि आपको इस चीज का पूर्व अनुभव हो, नहीं तो आप उसे पहचान ही नहीं पाएंगे। यह उसी तरह है जैसे हम ईश्वर को जानना चाहते हैं और जिसके बारे में हमें मालूम नहीं है। इसके लिए सभी तरह के विश्वास को खत्म करना बहुत जरूरी है। और इसका मतलब यह है कि सभी प्रकार का डर समाप्त हो जाए। विश्वास एक तरह की आशा है और आशा वही करता है जो निराशा में हो।
मस्तिष्क जिसे किसी अथॉरिटी का डर नहीं हो सिर्फ वही प्रेम कर सकता है। हमें यह समझना होगा कि आखिर प्रेम है क्या। क्या प्रेम खुशी है या प्रेम आकर्षण है या प्रेम कामवासना है। देश से प्रेम, परिवार से प्रेम, बच्चों से प्रेम, हमें समझना होगा आखिर प्रेम है क्या।
क्या बिना बार-बार के आनंद जी कोई प्रेम में रह सकता है। इसको समझने के लिए हमें यह जानना जरूरी है कि प्रेम क्या नहीं है। क्या प्रेम ईर्ष्या है? क्या प्रेम वो हो सकता है जिसमें हमारा कोई लक्ष्य हो? क्या वहां प्रेम हो सकता जहाँ किसी तरह की हिंसा हो रही है। चाहे कामवासना की हिंसा हो या और किसी तरह की शारीरिक या मानसिक। नहीं तो क्या वह प्रेम हो सकता है? गुस्सा, घृणा, उत्तेजना की अवस्था में प्रेम कैसे हो सकता है।
हम चाहते हैं कि लोग हम से प्रेम करें और ऐसा सब के साथ है। ऐसे इसलिए है कि हम अंदर से बिल्कुल खाली जीवन में अकेले हैं और हमारी तलाश है कि कोई हम से प्रेम करें चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।
इसलिए प्रेम करना ज्यादा जरूरी है। लेकिन एक डरा हुआ मन मस्तिष्क कभी प्रेम नहीं कर सकता है। मस्तिष्क जो सिर्फ अपने मतलब की बात सोचता है, लालची हैं अपने लक्ष्य के बारे में सोचता रहता है, अपने लाभ के बारे में सोचता है वह कभी प्रेम नहीं कर सकता। जिसको अपराधबोध बहुत है, बहुत दुखी है, वह कभी प्रेम नहीं कर सकता। एक मस्तिष्क जो कई टुकड़ों में बटा है, वह प्रेम नहीं कर सकता। टुकड़ों में बंटने का मतलब होता है दुखी होना। आप और मैं भी बीच में बांटना, श्वेत और अश्वेत के बीच में बांटना, एक देश से दूसरे देश
के बीच में बढ़िया, एक जाति से दूसरे जाति के बीच में बांटना। यह सब दुख के कारण हैं। अच्छाई का मतलब होता है जिसका कोई टुकड़ा नहीं और दो टुकड़ों में बटा नहीं है। प्रेम शब्द का मतलब ही है अखंड रहना।
मित्र ने यह कहते हुए ज्ञान दिया कि अगर सफाई करनी है तो बस दो ही तरीके हैं..एक तो सारे के सारे सामान को कचरा मान कर एक जगह इक्कठा कर लो ..और फिर उसमें से जो अच्छा अच्छा काम योग्य हो, उसे निकाल कर साफ सूफ करके वापस जमा कर रख दो..बाकी का बचा सामान मसलन कटे फटे या छोटे हो चुके कपड़े, जूते, टूटे बरतन, सूटकेस आदि ...जो बांट दिये जाने योग्य है नौकर चाकर को देकर दानवीर की तरह मुस्कराओ और बाकी का बचा कचरे में बाहर निकाल फेंको.
प्रेम शब्द का मतलब ही है जो अलग-अलग नहीं है, टुकड़ों में नहीं है। जो डरे हुए जिनका एक मकसद है जो कुछ पाना चाहते हैं जो विषयालु हैं जिनको गुस्सा आता है और जो अलग-अलग टुकड़ों में बैठे हुए हु कभी प्रेम नहीं कर सकते।
अपने मकसद को पाने के लिए साथ आए लोग कभी एक दूसरे से प्रेम नहीं कर सकते। यहां यह जानना सबसे पहले जरूरी है कि क्या प्रेम नहीं है।
इच्छा में क्या बुराई है। दुनिया के विभिन्न धर्मों में अपने इच्छाओं को दबाने के बारे में बहुत सारी चीजें लिखी हुई और बहुत सारे धार्मिक लोगों ने इसके लिए बहुत प्रयास किए हैं। हम कोई बहुत सुंदर चीज देखते हैं और हमें अच्छा लगता है हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और हमें अच्छा लगता है। लेकिन समस्या उसके बाद शुरू होती है हमारे विचार हमारी सोच उसे पाना चाहती है उसका मालिक बनना चाहती उसे अपने पास रखना चाहते हैं उस पर कब्जा करना चाहते हैं।
क्या यह संभव है कि हम एक बहुत खूबसूरत चीज को देखें चाहे वह सूर्यादय हो, एक छोटा बच्चा हो, एक खूबसूरत स्त्री हो, कोई बहुत प्रभावशाली व्यक्ति हो और हम उसकी सुंदरता को देखें और उसका आनंद ले और कुछ ना करें।
जब हमारी चाह सुंदरता से मिलती है तो ये उस ऊर्जा के साथ मिल जाती है और हमारी सोच उसे मजबूत बनाती है। तो फिर हमारी एक्टिविटी है वह बदल जाती है। हम सुंदरता का आनंद लेना भूल जाते हैं।
लेकिन जब हमारी चाहत और हमारी सोच उस सुंदरता के साथ नहीं आती, तो हमारी प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग होती है और यह प्रतिक्रिया समय की सीमा से परे है।
लेकिन यह अवस्था बहुत ध्यान से किसी भी चीज को सुनने से ही प्राप्त होगी और इसके लिए कठिन परिश्रम करना होगा। यह किसी किताब को पढ़कर किसी वक्ता को सुनकर नहीं प्राप्त किया जा सकता। इसका कोई प्रोसेस नहीं है कोई विधि नहीं है अगर इसकी कोई विधि बना दी जाए तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा सारी चीजें फिर वही घूम फिर के आ जाएंगे और हम विधि में उलझ कर रह जाएंगे।
हम अपने जीवन और कैरियर के लिए कितनी मेहनत करते हैं। लेकिन प्रेम और ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हमें इससे भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। और यह बिल्कुल नॉन प्रॉफिट मेकिंग प्रक्रिया है, सांसारिक अर्थों में इसमें कोई लाभ नहीं होता। यह एक अवस्था का नाम है।