कहना मन की बात जरूर

उर्मिला द्विवेदी

बात जो मन में आये कोई
झटपट कहना उसे जरूर
दंभ न रखना वक्त हो कोई
दिल को रखना पास जरूर

किया पिता का काम कोई
जब दिल को जाये छूकर
वक्त बिताना ना तुम कोई
लगना जाकर गले जरूर

मां जब चीज बनाये कोई
अपने मन की तेरे खातिर
चूम हाथ को लेना भाई
लगकर उसके गले जरूर

घर संवारती धूल में खोई
अस्त व्यस्त हो पत्नी अंदर
कान में जाकर कहना सांई
लगती सुंदर बहुत जरूर

लौट शाम को आफिस से
आये मन का साथी अंदर
दिल की बातें करना उससे
बैठ बिताना वक्त जरूर

बच्चों को तुम गले लगाना
उनसे कहना बात जरूर
भले व्यस्त हूं हर पल माना
साथ हूँ तेरे नहीं हूँ दूर

जड़ें हों कितनी भी गहरी
रखना है रिश्तों को जड़कर
पनपेंगे पा दिल की छतरी
राह अगोरना ठहर ज़रूर

नहीं भरोसा वक्त का कोई
कब छूटे साथ बिखरकर
दोस्त न रूठा जाये कोई
दिल से कहना बात जरूर

ना करना वक्त का इंतजार
ना रहना होकर तुम मगरूर
बात कभी जो जाये छूकर
कहना उसको बहुत जरूर
 

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