आओ   मिलकर   सोचें  :

वक्ता का कहना है....  हम मौत से इतना डरते क्यों हैं?

 (यह आलेख जे कृष्णमूर्ति के दिए गए विचारों पर आधारित है)

मुकेश आनंद

प्रतिदिन का जीवन हमारे लिए एक यातना से कम नहीं है। उठना तैयार होना ऑफिस जाना पैसे कमाना खर्च करना और फिर वापस सो जाना हमारा जीवन इन सभी चीजों में उलझा रह जाता है। शुरू में यह सब चीजें अच्छी लगती है लेकिन फिर हम इन सब चीजों से पूरी तरह बोर हो जाते हैं। हम उससे बचने के लिए, इस इस यातना से बचने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। हम चर्च जाते हैं, मंदिर जाते हैं, मस्जिद जाते हैं, फिल्म देखने जाते हैं, त्योहार मनाते हैं, किसी भी तरह इसका सामना नहीं करते हैं। हम इसका समाधान नहीं करते, बल्कि इस असहज परिस्थिति से बचने का प्रयास करते हैं। अगर हम इस परिस्थिति का समाधान निकालने का प्रयास करें तो हमें पहले इसको समझना होगा।

हमारी सोच को हमारी यादें प्रभावित करती हैं। हमारी सोच हमारी मेमोरी पर आधारित है मेमोरी हमारे अनुभव पर आधारित है। जैसे ही हम किसी की परिस्थिति किसी घटनाएं किसी चीज को देखते हैं तो हमारी सोच हमारी यादें उस पर हावी हो जाती है और हम किसी भी चीज को पूरी अटेंशन के साथ नहीं देख पाते।

और अगर हम किसी चीज पर पूरी तरह से ध्यान ना दें या उसे पूरी तरह जागृत अवस्था में ना देखें तो हम उसे पूर्णता के साथ समझ नहीं सकते। अपनी पुरानी सोच और याद से जब हम किसी चीज को देखते हैं तो कभी भी पूरा ध्यान नहीं हो सकता। क्योंकि हमारी सोच और यादें कभी भी पूर्ण नहीं होती, आंशिक होती है। और इस तरह हमारी जिंदगी कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं करती। हमारी जिंदगी मात्र हमारे अनुभव हमारी यादें जैसी होती है और हम उनको जमा करते जाते हैं। प्रेम, कामवासना, संपत्ति, मिलना, बिछड़ना, कष्ट और  आनंद हमारा जीवन इन सभी चीजों का एक पुलंदा बन के यह जाता है। लेकिन इसमें एक समस्या है । हम सबको पता है की जितनी भी चीजें हमारे पास है हमारी यादें हमारी मेमोरी यह हमारे साथ समाप्त हो जाएगी। अब क्योंकि हमने इन चीजों को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया है, इसलिए इनको खोने का डर हर समय हमारे जेहन में घूमता रहता है ।

यही हमारी सारी समस्याओं की जड़ है। हम अपनी यादें और सोच को लेकर अपने मस्तिष्क को इतना संकुचित कर देते हैं कि उसमें संसार की सर्वश्रेष्ठ उधार और अनंत रहने वाली शक्तियों का हमें भान नहीं होता है। अगर हम अपनी यादों और अपनी सोच को रोक ले और किसी तरह उन पर नियंत्रण पा ले तो हम किसी भी चीज पर पूर्ण रुप से ध्यान दे सकते हैं और उसको उसी रूप में देख सकते हैं, जैसा वह है। अपनी सोच अपनी यादों से अप्रभावित।

और जब हम ऐसी अवस्था को प्राप्त होते हैं तो इस शरीर के जीवन के समाप्त होने से पहले ही हम उस मेमोरी याद और सोच को समाप्त कर सकते हैं उसके लिए मर सकते हैं। और यही हमें मृत्यु के महान भय से छुटकारा दिला सकती है।

लोग इस भय से छुटकारा पाने के लिए गुरुओं के पास महात्माओं के पास राजनीतिज्ञों के पास और अन्य भी जो इस तरह के लोग हैं उनके पास जाते हैं। लेकिन कोई भी दूसरा व्यक्ति आपको आपकी यादें और आपकी सोच से आप को मुक्त नहीं कर सकता। और जब तक इन चीजों से मुक्ति नहीं मिलती, आप जीवन को संपूर्णता में कभी समझ नहीं सकते। और यह काम आपको स्वयं ही करना होगा। लेकिन इसके लिए आपके भीतर बहुत साहस जीवंता और ताकत चाहिए, अपनी सोच, अपनी याद इन सभी चीजों से छुटकारा पाने के लिए। यह आसान नहीं है। हम सब अपने अपने छोटे-छोटे खोल अपनी जाति अपने धर्म अपनी राजनीतिक दलों अपने राज्य अपने देश की सीमाओं में संकुचित होकर अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं। हमारे लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता का मतलब सिर्फ और सिर्फ शारीरिक स्वतंत्रता या परतंत्रता है। लेकिन मानसिक रूप से अपनी यादों में अपनी सोच में हम पुरानी यादें, जो कि कई हजारों साल के मस्तिष्क का विकास है, उसी में उलझे रहते हैं। ये असली स्वतंत्रता नहीं है। असली स्वतंत्रता है उन यादों और इन सब से अपने आपको अलग करके पूरी दुनिया को एकता जी नजरिए से देखना क्योंकि संसार हर पल नया है। उसमें परिवर्तन होते रहते हैं और उसको पुरानी यादों और सोच से कभी नहीं समझा जा सकता। हमारे मस्तिष्क और शरीर की पूरी ऊर्जा कहीं ना कहीं दबी रह जाती है। जो व्यक्ति पूर्ण संपूर्णता के साथ अपने जीवन को जी लेता है तो उसे मृत्यु का कोई भय नहीं रहता है।

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