आंखों में अश्क…

सुभाष चौरसियाबाबू

आंखों में अश्क छिपा कर हम, हंस कर हाल बताते हैं

कोई पूंछे तुम कैसे हो, होले  होले मुस्कराते है

 

सब हाल है अच्छा अपना, कह देते हैं सब खैरियत है

झूठा समझे इसको कोई, सही मे यही हकीकत है

 

अपने गमों के आंसू  हम,आंखों आंखों में पी लेते हैं

कोंने में छुप कर रो लेते हैं, फिर भी हंस कर जी लेते हैं

 

अपना दुखड़ा रोयें किससे, सभी तो जलने वाले हैं

करें भरोसा हम किस पर, सब बगुला से रखवाले हैं

 

किसी से  पीडा़ कह देना, मन ही मन मुस्कायेंगे

आंसू ढारेंगें सन्मुख तेरे, घर में घी के दीप जलायेंगे

 

चन्द दिनों का जीवन ये, हंस कर हंसा कर जी लेना

इन्सानियत जगा लेना दिल में, औरों के गम पी लेना

 

नहीं है कम गम अपने, ये बेवक्त यूं ही कट जायेगा

कांटों में चलना जो सीख गया, तो गुलाब सा खिल जायेगा

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