Description: d.jpgसम्पादकीय

                               आज के युवाओं हेतु

विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता

 

वि

श्व के हर देश, प्रांत, स्थान की भौगोलिक स्थिति अलग-अलग होती है। भौगोलिक स्थिति में बदलाव से लोगों के प्राकृतिक वातावरण, आस्था के आयाम, भाषा, पहनावा, बोलचाल, रहन-सहन, सोचने की शक्ति, और समझने की क्षमता बदल जाती है, लेकिन हर एक के जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जो किसी मनीषी से जुड़कर देश-काल-परिस्थति की सीमा को लांघ जाते हैं और हमेशा-हमेशा के लिये अमर हो जाते हैं। ऐसा उस सोच के कारण होता है जो चीजों को अक्षुण्य बनाने में सक्षम होती हैं। वाणी और विचार ऐसे दो अनमोल रत्न हैं जो धरोहर बनने में देर नहीं करते।

 

विवेकानंद एक ऐसे महापुरूष थे जिन्होंने अपने युवावस्था में अपने विलक्षण विचारों से काल व स्थान के प्रभाव को नकारते हुये सबको एक-सा प्रभावित किया था। विवेकानंद का कालखंड उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का वह समय था जब राजनीतिक उथल-पुथल और सामाजिक सुधार अपनी चरम सीमा पर थे। 

 

भारत के लोग विवेकानंद को अमेरिका के विश्वधर्मसम्मेलन शिकागो में 11 सितम्बर 1893 को दिये गये भाषण की वजह से ज्यादा जानते हैं। यह भाषण विश्व के धर्मों के लिये भारत की ओर से एक उपहार बन गया। यह भाषण बहु-आयामी है। 

 

विवेकानंद ने लोगों को अपने देश से प्यार करना सिखाया, अपनी संस्कृति पर गर्व करना सिखाया, समस्त मानव-जाति से अपनत्व बढ़ाने पर जोर दिया, दूसरे धर्म के अनुयायियों से दूरी नहीं रखने पर बल दिया, और समस्त मानव-जाति को एक परिवार समझने के लिये कहा।

 

शिकागो सम्मलेन में सबसे पहले विवेकानंद ने मंच पर सरस्वती की प्रतिमा के सामने झुककर प्रणाम किया, फिर बोलना शुरू किया।

 

विवेकानंद की प्रत्युत्पन्न मति ने जब कहा - मेरे अमेरिकी बहनों और भाइयों, तब कुछ देर के लिये समय रूक-सा गया मानों भविष्य के पटल पर वह अपने हस्ताक्षर कर रहा था, यह जताने के लिये कि यह क्षण सदा-सदा के लिये अमर हो रहा है।

 

विवेकानंद के विचारों को सुनकर लोगों को ऐसा लग रहा था कि उनकी वाणी में मां सरस्वती अपने शब्द डाल रही थीं और उनको भी अमरत्व दे रही थीं। न किसी ने ऐसा पहले कभी बोला था और न कभी ऐसा बोलने के बारे में सोचा था।

 

विवेकानंद के सम्मान में, उनका जन्मदिन युवा-दिवस के रूप में मनाया जाता है। विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

 

किसी भी देश के विकास में उसके युवाओं का सबसे अधिक योगदान होता है। युवा जो सोचता है, वही समाज सोचता है क्योंकि समाज को युवाओं में ही अपने भविष्य की सुरक्षा की किरण दिखायी देती है। इसलिये आज जरूरत इस बात की है कि हर युवा की सोच भविष्य में निहारने की हो, तार्किक हो, वैज्ञानिक तथ्यों पर केंद्रित हो और समाज के लिये व्यावहारिक हो।

 

युवा-शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। इस रीढ़ के मजबूत होने से देश और समाज नए शिखर पर पहुंचते हैं। युवा ही भूतकाल और भविष्य को जोड़ने वाले पुल भी होते हैं। युवाओं में गहन ऊर्जा और उच्च महत्वाकांक्षायें भरी होती हैं, इसलिये उनकी आंखें भविष्य को ज्यादा खूबसूरत तरीके से देख पाती हैं। विवेकानंद का विश्वास था कि हम में से अधिकांश लोग अपने जीवन में इसलिए असफल हो जाते हैं क्योंकि वे समय पर साहस नहीं जुटा पाते हैं और डर जाते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है, युवाओं के कधों पर, युग की कहानी चलती है, इतिहास उधर मुड़ जाता है, जिस तरफ जवानी चलती है।

 

भारत युवाओं का देश है। यहाँ की आधी आबादी युवाओं की है। हर सरकार और समाज का प्रयास होना चाहिये कि उसके युवाओं में नकारात्मकता और अकर्मण्यता जन्म न लेने पाये, उनमें धैर्य की कमी न होने पाये, और वे हमेशा मानव-संसाधनों के माध्यम से सकारात्मक कार्य में भागीदार बने रहें।  

 

विवेकानंद का विश्वास था कि युवक को तब तक नहीं रूकना चाहिये जब तक वह अपने लक्ष्य को हासिल न कर ले। जब तक वह खुद पर विश्वास करना  नहीं सीखेगा, तब तक उसे भगवान पर भी विश्वास नहीं होगा। भला हम भगवान को खोजने कहां जा सकते हैं, अगर हम उसे अपने दिल और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते हैं?

 

विवेकानंद को अपने देश से बहुत लगाव था। वह अपने देश से बहुत प्रेम करते थे। वह हमेशा भारत के भविष्य के प्रति विचारमग्न रहते थे। विवेकानंद जापान से शिकागो जाते हुए जहाज के सफर में जमशेदजी टाटा से मिले। जमशेदजी टाटा कुछ नये विजनेस आइडिया के लिये अमरीका जा रहे थे। विवेकानंद ने जमशेदजी टाटा से कुछ बातें की और कहा कि आपको भारत में एक अनुसंधान व शैक्षिक संस्थान खोलना चाहिये, स्टील की एक फैक्ट्री स्थापित करनी चाहिये जिससे देश के युवाओं का कल्याण हो और उनको रोजगार का अवसर मिले।

 

जमशेदजी टाटा पर विवेकानंद की बातों का काफी असर हुआ और उन्होंने इन दोनों मोर्चों पर काम करने की ठान ली। जमशेदजी टाटा ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना की जो काफी कोशिशों के बाद 1909  में चालू  हुआ। जमशेदजी ने स्टील फैक्ट्री भी खोली।

 

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1893 का विश्वधर्मसम्मेलन, वास्तव में, कोलंबस द्वारा 1492 में अमेरिका की खोज के 400 साल पूरे होने पर आयोजित विशाल विश्व मेले का एक हिस्सा था। स्वामी विवेकानंद ने इस मेले को ऐसा प्राण दिया कि वह युगों-युगों के लिये मेला से हटकर प्राणवान धर्मसभा के रूप में अमर हो गया। 

 

विवेकानंद के विचार आज भी हर समाज व हर देश के लिए प्रासंगिक हैं, और युगों-युगों के लिए प्रासंगिक बने रहेंगे क्योंकि इनमें समाज का हित छिपा है, देश का गौरव छिपा है तथा मानव-जाति का विकास छिपा है।

 

स्वामी विवेकानंद की वाणी बहुत ओजमयी थी। जो एक बार सुन लेता, मंत्रमुग्ध हो जाता था। जब वह कहते-उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, याद रखो कि तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हो, ब्रहमांड की सारी शक्तियां पहले से ही तुम्हारी हैं। याद रखो, जो अपनी आंखों पर हाथ रखकर अंधेरे का रोना रोते हैं, वे अपने अंदर की शक्तियों को पहचान नहीं पाते हैं।

 

हर युवा को अपने अंदर वक्तव्य क्षमता का निखार करना होगा, अपने कामों को पूरा करने में निपुणता हासिल करनी होगी, अपनी सभ्यता-संस्कृति का पूर्ण ज्ञान बटोरना होगा, और अपने देश के प्रति अव्वल दर्जे का लगाव रखना होगा। अगर यह संभव हो सका तब वह युवा हमेशा पूजित होता रहेगा चाहें वह देश और काल कोई भी क्यों न हो?

 

ज्ञान विज्ञान सरिता परिवार की तरफ से सभी पाठकों को भारतीय युवा दिवस के साथ-साथ नव वर्ष की भी हार्दिक शुभकामनाएं। ज्ञानविज्ञानसरिता परिवार चाहता है कि  उससे जुड़े सभी लोग अपने आसपास के समाज के हित के बारे में सजग रहें और उनका संभव विकास करने में अपना योगदान करते रहें।

 

अमिट नये पद चिन्ह बनाओ,

सूर्य सदा बनकर चमको तुम।

स्वयं विधाता बन दिखलाओ,

अंतर में विश्वास जगा तुम।।

 

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