यादें याद आती है
विशाल सरीन
मन में विचार आना और फिर उसकी उधेड़बुन में खो जाना सामान्य बात है। आज की तेज तरार भागती जिंदगी में फुर्सत मिलते ही बीते समय में खो जाने में बड़ा आनंद आता है। खासतौर से वह समय जो शरारतें और मौज मस्ती करने में निकला हो। कभी कभार तो ऐसी बातें याद आने पर इंसान अकेले बैठे-बैठे ही मुस्कराने लगता है। हो सकता है यह पढ़ते हुए आपके मन में भी ऐसी ही कुछ यादें ताजा हो गई हों और होंठों पर हल्की मुस्कान ने दस्तक दे दी हो।
जब टेलीफोन नहीं था तब अंतर्देशीय पत्र या पोस्टकार्ड पर सगे संबंधी अपने परिवार का हाल चाल लिख कर भेजते थे और हफ्तों के बाद डाकिया जवाबी पत्र आपके घर देकर जाता था। उस पत्र को पाकर अलग ही खुशी की लहर होती थी। फिर उन सब पत्रों को एक लोहे की तार में संजोकर रखा जाता था। समय मिलने पर ऐसे पत्रों को दोबारा पढ़ा जाता था| पत्रों पर से डाक टिकट को उतार कर उनका संग्रह भी करते थे और इसे बच्चे अपना ‘स्टाम्प कलेक्शन’ शौक बताते थे।ऐसे ही अपने घर की छत से रोशनदान से नीचे झांक कर टीवी देखा जाता था। कभी कोई बीच में खड़ा हो जाए तो उसको बैठने के लिए बोलना या आवाज नहीं आ रही इसको थोड़ा तेज करो अथवा छत पर जाकर एंटीना को ठीक करना इत्यादि आम बात थी। आधे घंटे के लिए आने वाला गीतों का प्रोग्राम चित्रहार बड़े ही चाव से देखते थे, और ऐसे ही गीतों को दोबारा देखने के लिए एक सप्ताह का इंतजार किया जाता था।
जब घर में रंगीन टीवी का आगमन हुआ तो क्या ही बात थी। तब मिठाई बांटी गई थी। पड़ोस के लोग भी देखने आते थे। कभी-कभी बहुत लोगों के आने के कारण नीचे बिछोना लगाया जाता था ताकि सभी अच्छे से बैठ जाएं। सब लोग अपनी चप्पल घर के द्वार पर उतार कर आते थे। रंगीन तस्वीरों को देखने का अलग ही आनंद था। टीवी देखने के बाद उसको एक अच्छे से फूलदार कपड़े से ढक दिया जाता था। ऐसा नहीं कि कभी भी टीवी ऑन कर लो बल्कि उसके लिए एक समय तय होता था।फिर जब घर में लैंडलाइन फोन लगा तो खुशी की सीमा ना थी। अपने मित्रों व रिश्तेदारों से ज्यादा फोन तो पड़ोसियों के रिश्तेदारों के आते थे। फिर फ़ोन करने वाले को बोला जाता था कि आप कुछ समय बाद फ़ोन कीजिए ताकि बात करने वाले को उनके घर से बुलाकर लाया जा सके। फिर पड़ोसी आता था तो उसके लिए चाय - शिकंजी बनाना तो होता ही था।
आज की जिंदगी में यह सब अजूबे सी बात है। अधिकतर लोगों की लाइफ फुल ऑफ़ मीडिया डोमिनेटेड हो गई है। सिनेमाघर में बड़ी रंगीन स्क्रीन और घरों में अनगिनत टीवी चैनलों का चलन हो गया है। अब आपको खबरें सुनने के लिए नियत समय पर उपलब्ध होने की जरूरत नहीं है, किसी भी समय अगर एक नहीं तो अन्य चैनल पर तो सुनने को मिल ही जाएगी। ऐसे ही दूसरे प्रोग्राम के साथ भी है। कुछ पुराना देखना है तो यूट्यूब या किसी अन्य वेबसाइट पर देखने को मिल जाएगा। इसके अलावा रेल गाडी या बस से सफर के दौरान कुछ देखने का मन है तो यह सब टीवी की जगह मोबाइल फोन पर देखने को मिल जाएगा। हवाई जहाज़ में तो आपकी सीट के सामने स्क्रीन लगी होती है और कुछ मनचाहे प्रोग्राम, संगीत और फिल्मों से अपने सफर को आनंदमय बनाया जा सकता है।
पहले जहां सगे संबंधियों की खैरियत के लिए हफ्तों प्रतीक्षा करते थे, वही आज फेसबुक, ट्विटर इत्यादि पर पल पल का हाल मालूम पड़ जाता है। यहां तक की किस दिन कुछ खास व्यंजन बना था, कहीं घूमने गए तो वहां की तस्वीरें भी देखने को मिल जाती है। कुछ लोग तो खाना खाने से पहले प्रार्थना करने की बजाय उसकी फोटो खींच कर सबके साथ शेयर करते हैं और फिर खाना शुरू करते हैं।
कुछ लोगों ने तो व्हाट्सएप पर फैमिली ग्रुप बनाए हुए हैं, जिससे वह अपनी जिंदगी की हर बात से रूबरू करा सकें। कभी कभार उनसे मिलने पर समझ ही नहीं आता कि आखिर उनसे बात क्या की जाए क्योंकि सब कुछ तो पता है कि उनकी और हमारी जिंदगी में हो क्या रहा है तो बात करने का मुद्दा मिलना ही मुश्किल हो जाता है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कुछ भी हमेशा एक सा नहीं रहता। आज को बीता हुआ कल होने में ज़्यादा समय नहीं लगता। इसलिए आज के हर पल को एक मीठी याद बनाने के लिए, हर समय का सदुपयोग करते हुए, सब के साथ मिलकर खुशी भरा जीवन व्यतीत करें।
परमात्मा की कृपा से नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो।
—00—