लाल दुपट्टा
अर्चना पांडेय ‘अर्चि’
बचपन की कई ऐसी यादें ऐसी होती है जो हमें ज़िंदगी भर गुदगुदाती रहती हैं, हँसाती रहती हैं। ऐसी ही एक घटना मेरे साथ घटी। मुझे लाल रंग से बहुत लगाव है और बचपन में भी था। मैं मेरी छोटी बुआ सुमन के लाल दुपट्टे से हर रोज कनिया बनकर खेलती थी। रोज पहनती थी और फिर अच्छे से रख देती थी। हमारा समूह बहुत बड़ा था। गाँव की मेरे उम्र की कई लड़कियाँ थी जो हमारे साथ खेलना पसंद करती थी। हम सभी छत पर खेलते थे। बगल वाले घर की मेरी छोटी बहन कुमकुम के साथ और गाँव की अन्य सहेलियों के साथ हम खेलते थे। मेरे चाचा की लड़की बड़ी लड़की रोजी, थी तो मुझसे उम्र में कम लेकिन उसको खेल से कोई लेना -देना नहीं था। वो हमारे साथ कम ही खेलती थी। वो अधिकतर अपनी माँ का हाथ बँटाती थी। हर कार्य में अपनी माँ की मदद करती थी। बचपन से ही वह खाना बहुत स्वादिष्ट बनाती थी लेकिन हम सब के साथ खेलना उसे समय की बर्बादी लगता था। हम सभी सहेलियाँ मिलकर अपने बचपन का जमकर आनंद उठाते थे। और रोजी बहन सयानी बनकर काम करती थी। वह घर को भी बड़े अच्छे तरीके से सजा सावरकर रखती थी।
हर गर्मी की छुट्टी में हमारे गाँव में हमारे घर के सभी लोग एकत्रित होते थे। घर में खुशहाली आ जाती थी। तब आम का मौसम होता था। हर शाम बोरा में आम तोड़कर आता था। हम तब तक आम खाते रहते थे जब तक हमारा जी नही भरता। हमारी बड़ी बुआ भी हर बार आती। उनकी बेटी ऋतु हमारे गाँव में आकर हमारे साथ खूब मस्ती करती थी। हम सभी उसका इंतजार करते रहते कि कब छुट्टियां आएगी और ऋतु आएगी, हम खूब खेलेंगे।
इस बार जब ऋतु आई तो फिर हम सभी एक बार मस्ती से झूम उठे। कुमकुम तो ऋतु की बहुत अच्छी सहेली बन गई। आज भी दोनों की खूब बनती है। जब भी ऋतु गाँव आती मेरी छोटी बुआ सुमन को एक ज़्यादा दुपट्टा देना होता था। इसबार भी उन्होंने दिया । लेकिन बहन ऋतु के दिमाग में पता नहीं कौन सी बातें चली कि उसने दुपट्टे को दो टुकड़ा कर दिया। हम सभी डर गए कि अब तो बुआ हम सब को डाँटेगी। हमारी सुमन बुआ दिल की बहुत अच्छी है लेकिन उनको गुस्सा आता है तो बस आ ही जाता है। अब क्या था बुआ को पता लग ही गया कि ऋतु ने उनके दुपट्टे का दो टुकड़ा कर दिया है। वो तो गुस्से से तमतमा उठी और मेरा वाला दुपट्टा भी लेकर अलमारी में बंद कर दी। मेरे बहुत माँगने पर भी उन्होंने दुपट्टा नहीं दिया। बाबा-ईया ने भी बुआ से बहुत बार दुपट्टा देने को कहा, पर वे हठ पर अड़ी रही।
मेरे बाबा किसान थे। घर का हर काम अनाज बेचकर ही होता था। अब ईया ने उनको तौलकर पाँच किलो गेंहू दिए
और मेरे लिए लाल दुपट्टा लाने के लिए कहा।
मेरे गाँव के बगल में गंडक नदी है। उसको पार करने के बाद गुठनी नामक एक छोटा सा शहर है। मेरे बाबा गेंहू को झोले में लेकर गुठनी लाल दुपट्टा खरीदने निकले। वे हर दुकान में जाकर सात वर्ष की बच्ची का दुपट्टा माँगते। पूरे बाज़ार में घूम कर भी उनको लाल दुपट्टा सात वर्ष की लड़की के लिए मिला नहीं । वे खाली हाथ घर आते उससे बेहतर था कि जैसा भी मिले वे एक दुपट्टा खरीद ले। हार -थक कर वे एक छोटा सा दुपट्टा लेकर घर आए। डरते -डरते ईया को दिखाया। ईया ने मुझे दिखाया। पर मैं क्या करती इतने छोटे दुपट्टे का । मुझे तो पूरे शरीर में लपेट कर कनिया बनने वाला दुपट्टा चाहिए था। मेरे साथ, मेरे बाबा - ईया दोनों दुखी थे। उन दोनों से मुझे बहुत प्यार मिलता था। जो बोलो हाज़िर कर देते।
अब मेरे साथ दोनों दुखी थे कोई विकल्प नहीं था। रात गुजरी। सुबह जब मैं बिस्तर में ही थी। मेरी छोटी बुआ लाल दुपट्टा लिए खड़ी थी। उनका गुस्सा उतर चुका था। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। मैंने भी कहा-
आप मेरी सबसे अच्छी बुआ है। भगवान मुझे हर जन्म में आपको ही दे ताकि आपके लाल दुपट्टे का आनंद हर जन्म में उठा सकूं।
ये एकांत भी .....
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