औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय

विशाल सरीन

ज़ायका बड़ी मज़ेदार चीज़ है, एक बार किसी पदार्थ के लिए लग गए गया तो उसकी आदत हो जाती है। अब इस आदत के लिए कुछ भी कीमत अदा करनी हो तो इंसान उसके लिए तैयार रहता है। जैसे किसी को घूमने का चस्का लग गया तो कितनी व्यस्त ज़िन्दगी से भी फुर्सत के पल निकाल लेता है ।

अब यह स्वाद मुंह का भी हो सकता है और दिलो-दिमाग का भी । मुंह के स्वाद से मतलब जैसे सब्ज़ी में किसी को तीखा खाने की आदत लग जाए तो कम तीखा अच्छा नहीं लगता। अगर किसी को नमक तेज़ खाने की आदत लग जाए तो परिवार के दूसरे सदस्यों को मुश्किल हो जाती है। लेकिन उसका हल है कि सामान्य नमक डाला जाये और जिसको तीखा खाना है उसको अलग से नमक दे दिया जाए कि डाल लो जितना स्वाद के लिए चाहिए ।

वहीं दिल या दिमाग के स्वाद के लिए ज़बान का बहुत महत्त्व है। जैसे कहते है की तलवार का कट  तो भर सकता है पर ज़बान का लगा फट भरना मुश्किल होता है । इसलिए अपने शब्दों का इस्तेमाल बड़े ध्यान से करना चाहिए। यदि आप मीठे स्वभाव के मालिक हैं तो ठीक है लेकिन अगर तंस कसना आप की आदत है तो थोड़ा ध्यान रखना शुरू कीजिये कहीं जाने अनजाने किसी को चोट न लग जाए ।

कभी कभार ऐसे होता है की शरीर का घाव इतना दर्द नहीं देता जो कि ज़बान से निकले कुछ शब्द । शरीर के घाव का इलाज़ तो डॉक्टर से मिली दवाईयां कर देती है पर शब्दों की चोट का आघात गहरा होता है । इसी तरह अगर कोई मीठी ज़बान को सलीके से बरते तो जाने कितने टूटों को ज़िन्दगी के अरमान दे देता है ।

आप सामान्य पानी में अपना चेहरा देखें तो आपको प्रतिबिम्ब दिखाई देगा वहीं अगर आप उबलते पानी में इसके लिए प्रयास करेंगे तो भाप और बुलबुले दिखाई देंगे| इसका अभिप्राय यह है कि जिस तरह उबलते पानी में प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं देता उसी प्रकार गुस्से में इंसान किसी को क्या कह रहा है उसका आभास नहीं रहता जिसके लिए बाद में पछतावा होता है |

एक बार कोई महानुभाव राजू के दादा जी को मिलने पहली बार उनके घर पधारे और द्वार पर उनकी मुलाक़ात राजू के पिता जी से हुई । उन्होंने पारिवारिक नाम से दादा जी का संबोधन करते हुए मिलने की इच्छा व्यक्त की। अब पारिवारिक नाम तो सबका एक ही है तो राजू के पिता जी ने सम्मान सहित आग्रह किया कि हुकुम कीजिए दास आपके सामने है । ऐसे मधुर वचन सुन कर वह महानुभाव स्तब्ध रह गए और ऐसा सकारात्मक प्रभाव हुआ कि बोले मुझे इस घर के लोगों के स्वभाव और संस्कारों का भान हो गया है 

कड़वे शब्दों से जहाँ किसी के दिल को तोड़ा जा सकता है और नजदीक रिश्तो में दूरियों का कारण बनते है । वहीं मधुर वाणी औषधि के सामान होती है जो टूटे दिलो को जोड़ने की क्षमता रखती है और प्रेम भावना पैदा होती है। किसी बीमार को दवा की जगह ऐसे लोग अपनी वाणी से भी ठीक कर देते हैं। जैसे डिप्रेशन की समस्या को लीजिये, मोटिवेशन या उससे सम्बंधित शब्दों से हल किया जा सकता है । अक्सर जहा गुस्से से बात करने पर बनते हुए काम बिगड़ते है वही रुके हुए काम आप किसी से मीठा बोलकर करवा सकते है।

कुछ लोग सिर्फ अपनी उपस्थिति का अनुभव कराने के लिए बोलते है लेकिन अगर बात का कोई महत्व नहीं तो चुप रहना बेहतर है| इंसान की आँखें भी मुहब्बत और तकरार का इज़हार करने में अहम भूमिका निभाती है | अकसर  प्रेमी-प्रेमिका घंटों बिना बोले एक दूसरे को निहारते हुए अपने दिल की बातों को आँखों से ही बयां कर लेते हैं |

प्रार्थना है बोलने से पहले सोचने की प्रथा का पालन करने का। किसी को कुछ कहने से पहले यह सोच लिया जाए की अगर यही शब्द कोई हमसे कहे तो कैसा लगेगा । अगर वो आपको अच्छा लग रहा है तो बहुत बढ़िया नहीं तो शब्दों में कुछ बदलाव करे जो कि नकारात्मक प्रवर्ती के ना हों और उन् शब्दों के उच्चारण के बाद कोई पछतावा ना हो ।


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