निःशब्द हूँ, नासमझ हूँ
डॉ. संगीता पाहुजा
माँ -एक अमृतमयी,
कर्णतृप्त करने वाला शब्द
पुकारते ही, सर्व दुःखों का अंत प्रतीत करता शब्द,
सर्व दुखहारिणी, सर्वसुखकारिणी
मंगलमयीमूरत प्रकाशिनी,
माँ तुम सर्व सुख प्रदायिनी |
नवजात शिशु आता जब
माँ के हृदय से लिपट,
निश्चिंत सुख के सागर में हिलोरे लेता
सुरक्षित महसूस करता तब |
माँ का आँचल पकड़,
इस जग के दर्शन करता शिशु,
पग- पग पर,माँ- माँ करता
राजकुमार, राजकुमारी सा होने का अनुभव करता
शिशु निश्चिंत बढ़ता जाता |
माँ की परवरिश से, शिक्षा से
उच्च शिक्षित हो जाता |
पूरी दुनिया से बचाकर, ममता केआँचल में छुपाकर
बच्चे को बढ़ता देख
गर्वित होती माता |
फिर शुरू होती,
माता के निःशब्द,
नासमझ होने की अवधि |
तुम क्या जानो,
ये दुनिया क्या है |
तुम क्या जानो
सही गलत क्या है |
तुम चुप रहना सीखो
तुम्हें कुछ नहीं है ज्ञात |
सब सुख देने वाली माता
खुशी-खुशी निःशब्द व नासमझ भी
कहलाना स्वीकार करती |
बच्चों की खुशी में
खुशी समझ, निःशब्द
नासमझ बनकर भी
जीवन निःसार करती |
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