वैचारिक स्वतंत्रताशिक्षक दिवस पर एक निवेदन

 

आदरणीय शिक्षक, शिक्षिकाओं एवं बुद्दिजीवी मित्रों ,

 

भारत की स्वतंत्रता के अमृतमहोत्सव वर्ष में शिक्षक दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। 

हम में से अधिकांश लोग स्वतंत्र भारत में जन्मे हैं।  हमें अपने स्वतंत्रता-संग्राम की जानकारी श्रुति अथवा लिपि के माध्यम से है।

इस संग्राम की जटिलता एवं विषम परिस्थितियों का अंदाजा हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति में लेश मात्र  कमी अथवा देरी के कारण उत्पन्न हमारी अस्वस्थता और आक्रोश से लगा सकते हैं। 

इस सन्दर्भ में अनेक स्वतंत्रता सेनानियों का दृढ संकल्प, अदम्य साहस और सर्वस्व के त्याग  का  आंकलन हमारी निःस्वार्थ परिकल्पना पर आधारित है। इस जानकारी में उन बलिदानियों के दिल  दहलाने वाले प्रसंग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी युवा अवस्था में फांसी के फंदे को हँसते हँसते चूम लिया था।

शिक्षक समाज के विवेक और  देश की बौद्धिक-प्रबलता के संरक्षक, प्रवर्तक  और कर्णधार हैं।   इसी  प्रकार हर बुद्दिजीवी भी किसी--किसी रूप में इन जिम्मेदारियों का निर्वहन अपनी व्यावसायिक जिम्मेदारी मानकर करता है।  

यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इन जिम्मेदारियों का निर्वाह करना उसकी मजबूरी भी है क्योंकि, इसके बिना वह अपने पद, स्थान, प्रभाव-क्षेत्र  और तत्संबंधित सुविधाओं की प्रासंगिकता को संशयात्मक  बना लेता है।

इस आधार पर, हम कह सकते हैं कि प्रत्येक शिक्षक तथा प्रशासन एवं कार्यपालन से जुड़े हर  बुद्धिजीवी (जिसमें मैं स्वतः भी सम्मिलित हूँद्वारा इन जिम्मेदारियों का निर्वहन उसकी  बौद्धिकनैतिक और व्यावसायिक ईमानदारी की  मान्यता  पर निर्भर करता है। इसी को हम व्यक्तिगत सामाजिक  जिम्मेदारी (Personal Social Responsibility – PSR) कहते हैं। 

इन जिम्मेदारियों का निर्वाह स्वेच्छा से किये जाने के परिणाम बहुत सुखद होते हैं। ऐसा हम दृढ़ता से पिछले लगभग एक दशक के अपने अनुभव के आधार पर कह सकते हैं। 

नैतिकता, मानवीय मूल्यों और हमारी हजारों वर्षों की परंपरा से प्रेरित वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अग्रसर करने वाली  शिक्षा हमें अपनी वैचारिक स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए सहायक है और अपरिहार्य भी… 

आइये, इस स्वतंत्रता के  अमृतमहोत्सव वर्ष में हम संकल्प लें कि हम इस राजनैतिक स्वतंत्रता को ऎसी  वैचारिक स्वतंत्रता में बदलेंगे जिसमें हर व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह  पूर्ण ईमानदारी, संलग्नता और निःस्वार्थ भाव से करेगा। 

इस प्रकार का जीवन-यापन  अपनी  पारिवारिक  जिम्मेदारी  और  समृद्धि  के  निर्वाह  के  साथ  किया  जा  सकता हैयह हमारा अनुभव है। 

इस प्रकार का जीवन हमारे असंख्य स्वतंत्रता-संग्राम-सेनानियों के प्रति हमारी सच्ची कृतज्ञता  एवं  श्रद्धांजलि होगी।  साथ ही इसके द्वारा हम अपने प्रियजनों के प्रति सच्ची जिम्मेदारी का निर्वाह भी करेंगे।

 

जय हिन्द

भवदीय,

संयोजक

“ज्ञान विज्ञान सरिता”

 

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