खुशियां लौट आती हैं, खुशियों को बांट देने में

उर्मिला द्विवेदी

 

(सितंबर का महीना मस्ती का महीना होता है। हल्की ठंड आ रही होती है, परेशान करने वाली उमस जा रही होती है। इन्हीं को बयां करती कुछ पंक्तियां)

बहारों  तुम  जरा  आना,  होले  से चढ़  हवाओं में

मौसम  लगाये  बैठा  है,  नजरें  तेरे ही  ख्वाबों में

 

खुशबू बिखेर  कर  जाना, फल फूल पत्ते बेलों में

मंडराने  लगे  भौरें, परागों को चुनचुन ले जाने में

 

जमीं हो जाय हरी हरी, काले मेघ हों आसमान में

खुशबूभरी  आंधी चले, दिनरात गुलजार बागों में

 

रहे  न  मस्ती से परे कोई, गुनगुनाता रहे दिल में

बहारों  छोड़  मत जाना, है तेरा ही आसरा मन में

 

खूबसूरत बन आना इतना, खोजायें सब खुदही में

न  बाहर  झांक कोई पाये, न आ पाये कोई मन में

 

चहकें  चिड़ियां दरख्तों पे, तितलियां हों फूलों में

महके  ठहरी  हवायें  जो, उमंगें उभरें फिजाओं में

 

बहारों  तुम  जरा आना, मस्ती बन के हवाओं में

बैठे  हैं  कब  से   दुबके, बस  तेरे  ही  इंतजारी में

 

मजा  ही  और  होता है, बहारों को खुद बुलाने में

खुशियां  लौट  आती  हैं,  खुशियों  को बांट देने में


 

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